धनतेरस क्या है? यहां जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा और पूजा विधि

धनतेरस क्या है?

धनतेरस मुख्य रूप से एक भारतीय त्योहार हैl जो पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैl हिन्दू धर्म में इस दिन नई चीजों की खरीददारी और उनकी पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता हैl लोगों का ऐसा दावा है कि इस दिन हर प्रकार की नई वस्तुएँ खरीदने से उनमें तेरह गुना वृद्धि होती हैl

धनतेरस दिवाली सीजन का पहला त्योहार हैl धनतेरस दीपावली के त्योहारों की श्रेणी में आता है पांच दिवसीय दिवाली उत्सव की शुरुआत धनतेरस से मानी जाती हैl धनतेरस दिवाली के आगमन का प्रतीक हैl धनतेरस के दूसरे दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है जो कि एक बड़ा त्योहार हैl

हिन्दू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व हैl यह त्योहार धन, संपत्ति, साधन आदि वस्तुओं से जुड़ा हुआ हैl इस दिन सोना, चाँदी, बर्तन आदि महंगे सामान खरीदना शुभ माना जाता हैl यह पर्व हमारे जीवन के लिए समृद्ध और ख़ुशी का त्योहार हैl

धनतेरस का त्योहार कब और क्यों मनाया जाता है?

धनतेरस का त्योहार प्रति वर्ष "कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी" को संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता हैl इस दिन विशेषकर कुबेर, धन्वंतरि, यमराज, लक्ष्मी, गणेशजी और विश्वकर्मा आदि देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती हैंl

        धनतेरस खासकर दीपावली के शुभारंभ की खुशी में और विधि विधान के साथ कीमती वस्तुओं की खरीददारी हेतु मनाया जाता हैl इस दिन विभिन्न प्रकार के महंगे गहने, वाहन, बर्तन आदि खरीदे जाते हैl धनतेरस मुख्यतः इसलिए मनाया जाता है क्योंकि यह दिवाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैl धनतेरस मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और कहानियाँ प्रचलित हैl

        जिनमें से "समुद्र मंथन की कथा" को विशेष महत्व दिया जाता हैl कहा जाता है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि सोने से बना कलश लेकर प्रकट हुए थे जिसमें अमृत भरा हुआ था तभी से इस दिन को भगवान धन्वंतरि के नाम से धनतेरस नाम दिया गयाl भारत सरकार द्वारा धनतेरस के पर्व को "राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस" के रूप में मनाने का फैसला लिया गया हैl

धनतेरस का इतिहास क्या है?

धनतेरस खासकर चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी की स्मृति के संदर्भ में मनाया जाता हैl मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि हाथों में कलश लेकर प्रकट हुए थे इस वजह से धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है एवं उनमें ताजा पकवान बनाकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैl कहते हैं कि इससे धन, सौभाग्य, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से धनतेरस का विशेष महत्त्व हैl धनतेरस का इतिहास भगवान धन्वंतरी और माता लक्ष्मी की पूजा से जुड़ा हुआ हैl भगवान धन्वंतरी के पिता का नाम राजा धन्व थाl राजा धन्व काशी के राजा थेl

भगवान धन्वंतरी शुरू से ही शल्य शास्त्र में निपुण थेl कहा जाता है कि धनतेरस के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था तब वे अपने साथ अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन को धनतेरस नाम से जाना जाता हैl

जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।धनतेरस पर कुछ नया खरीदने की परंपरा है। इसका विशेष कारण है की धनतेरस पर कुछ खास ग्रहों के योग बनते हैं। जो बहुत शुभ फलदायक होतेl

धनतेरस की पौराणिक कथा

एक बार एक हिमा नाम का राजा थाl जब उसका विवाह हुआ तब उसके विवाह के चौथे दिन ज्योतिषी ने उसे बताया था कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आपकी निश्चित मृत्यु दस्तक दे रही हैl यह भविष्यवाणी सुनकर राजा हिमा भावुक हो गए और उन्होंने घर जाकर अपनी पत्नी को यह बात बताईl

तब उनकी पत्नी ने सोने और चाँदी से बनें सभी कीमती जेवरों को अपने कक्ष में रख दिया और शाम को घर के चारों ओर तेल के दीए जलाए जिससे घर बहुत ही सजा हुआ और चमकदार दिखने लगा, जब रात में स्वयं यमराज राजा हिमा के प्राण हरण करने के लिए आए तो वे भी ये सब देख आश्चर्यचकित हो गए

जब यमराज राजा हिमा के प्राण हरण करने के लिए  दरवाजे के पास से गुजर रहे थे तब वे दीयों के प्रकाश और आभूषणों की तेज चमक के कारण अंधे हो गए, कक्ष के अंदर राजा हिमा की पत्नी उन्हें कहानियाँ सुना रही थी तब यमराज भी चुपचाप उनकी कहानियाँ सुनने लगे, जब सुबह हुई तो यमराज निराश ही वापस यमलोक लौटेl इस प्रकार राजा हिमा के प्राण बच गए

धनतेरस पूजा विधि

·         मंदिर या पूजा वाली जगह को साफ कर के गंगा जल छिड़क दें

·         अब चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें

·         इसके बाद भगवान धन्वंतरि, कुबेर देवता और मां लक्ष्मी की मूर्ति या फोटा स्थापित करें

·         अक्षत रोली लगाने के बाद प्रतिमा पर लाल फूल अर्पित करें

·         घी या तेल के दीपक के साथ धूप और अगरबत्ती जलाएं

·         आपने जो भी नया खरीदा है, जैसे-गहने, बर्तन या अन्य कोई चीजें उसे चौकी पर भगवाम और माता लक्ष्मी के सामने रख दें

·         लक्ष्मी चालीस और स्त्रोत समेत कुबेर स्त्रोत का भी पाठ करें

·         मां लक्ष्मी की आरती के बाद मंत्रों का जाप करें

·         अब मिठाई का भोग लगाकर धनतेरस की पूजा संपन्न करें